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कर्म में सेवा का भाव ही भक्ति का प्रमाण: स्वामी परमानंद महाराज
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इंदौर. संसार के व्यवहार स्वप्न से जागृत नहीं होते. निष्काम भाव से देश की सेवा करने वालो को भी मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि वे कर्तव्य की तरह कर्म करते हैं. उनके कर्मो में परमार्थ का भाव होता हैं. परमात्मा ने मनुष्य शरीर उत्तम कार्यो के लिए दिया है. प्रेम और वात्सल्य का भाव हमारे मन में भी जागृत होना चाहिए तभी हम भी सेवा प्रकल्प से जुड़ सकते हैं. कर्म में सेवा का भाव आ जाए या कर्म को सेवा बना लें, भक्ति हो जाएगी. कर्म में सेवा का भाव ही भक्ति का प्रमाण है.
युग पुरूष स्वामी परमानंद गिरि महाराज ने आज शाम पंजाब अरोड़वंशीय धर्मशाला भवन पर अखंड परमधाम सेवा समिति के तत्वावधान में सात दिवसीय ध्यान योग शिविर के शुभारंभ सत्र में उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए. साध्वी चैतन्य सिंधु, हरिद्वार के स्वामी ज्योतिर्मयानंद, स्वामी योग विद्यानंद सहित अनेक संत विद्वान भी उपस्थित थे.
प्रारंभ में आश्रम परिवार की ओर से अध्यक्ष सीए विजय गोयनका, सचिव राजेश रामबाबू अग्रवाल, समन्वयक विजय शादीजा, मीडिया प्रभारी अरूण गोयल आदि ने महाराजश्री का स्वागत किया। बिजासन रोड़ स्थित अविनाशी अखंडधाम के हरि अग्रवाल, परमानंद योग वि.वि. के डॉ. ओमानंद एवं योग क्षेत्र से जुड़े अनेक विशिष्टजन भी इस अवसर पर उपस्थित थे. संचालन साध्वी चैतन्य सिंधु ने किया।
धन संपति का संग्रह अशांति की जड़
महाराजश्री ने कहा कि मनुष्य की बुनियादी जरूरत रोटी कपड़ा और मकान है लेकिन हर कोई जीते जी स्वर्ग की कल्पना करने में संकोच नहीं करता. देह सब कुछ नहीं है. हमारे अंदर ‘मैं मौजूद हैं. जीव का स्वभाव शांति और मौज में रहने का है लेकिन जरूरत से अधिक संग्रह की प्रवृत्ति के चलते हम ज्यादा से ज्यादा धन-सम्पति के संग्रह में जुटे हुए हैं. यही अशांति की जड़ है. हम भूल रहे हैं कि दुनिया मे किसी को शांति तब तक नही मिल सकेगी जब तक हमारे कर्मो में सेवा का भाव नहीं आएगा।